वाशिंगटन में मोदी और बीजिंग में कैरी, दोनों जगहों पर केंद्र में रहेगा चीन

वाशिंगटन। सोमवार से शुरू हुए भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दो साल के भीतर इस चौथे दौरे में भारत-अमेरिका संबंधों की गहराई भी नजर आएगी जो कि सोमवार से शुरु हो चुका है। पीएम मोदी के इस अमेरिकी दौरे पर भारत के पड़ोसी खासकर पाकिस्तान और चीन की खास नजर भी बनी हुई है।

अमेरिका की नज़र में भारत के मुकाबले चीन और पाकिस्तान को कभी ज्यादा तरजीह दी जाती थी। लेकिन, भारतीय डॉक्टर और इंजीनियरों ने लगातार अमेरिका में अपनी धाक जमाए रखी। आज के समय में भारत और अमेरिका अफगानिस्तान में एक साझीदार के तौर पर काम कर रहे हैं और इन दोनों के बीच का संबंध कही उससे बढ़कर है और चीन-पाकिस्तान के गठजोड़ का जवाब भी है।

टाइम्स ऑफ इंडिया की ख़बर के मुताबिक, जिस वक्त प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मंगलवार को अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ बैठक करेंगे और वहां के ब्लेयर हाउस में भारतीय-अमेरिकी शीर्ष लोगों से मुखातिब होंगे, ठीक उसी समय अमेरिका के विदेशमंत्री जॉन कैरी बीजिंग में चीन को मनाने का काम करेंगे। ताकि, भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में प्रवेश में आ रही बाधाओं को हटाया जा सके। ये भी

स्विट्जरलैंड की तरफ से एनएसजी में भारत की सदस्यता में समर्थन किए जाने का नई दिल्ली ने स्वागत किया है। जिसके बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जेनेवा से वाशिंगटन गए। हालांकि, चीन विदेशमंत्री जॉन कैरी के साथ होनेवाले वार्षिक द्विपक्षीय वार्ता में दक्षिण चीन सागर विवाद के चलते एनएसजी दोनों देशों के बीच कोई बडा मुद्दा नहीं होगा। साल 2008 में भारत के साथ असैन्य परमाणु करार के वक्त खुद राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने ऐन वक्त पर चीन के राष्ट्रपति हू जिंताओ को फोन कर उसे मनाया था।

हालांकि, चीन के मामले में इस वक्त स्थिति अनुकूल नहीं है। लेकिन, भारत के परमाणु परीक्षण के बाद साल 1974 में जो 48 सदस्यीय परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह की स्थापना की गई थी, अगर इनमें से अधिकतर देश भारत का समर्थन करता है तो चीन अलग-थलग पड़ जाएगा। भारत के साथ अगर अमेरिकी संबंधों की बात करें तो चीन के मुकाबले आज व्यापार काफी बढ़ा है। जानकरों का मानना है कि जिस तरह से चीन मंदी के दौर से गुजर रहा है और भारत की अर्थव्यवस्था जबरदस्त तरक्की कर रही है ऐसे में आज अमेरिकी नई दिल्ली की ओर देख रहा है।

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